पाठः एकादशः पर्यावरणम् (पर्यावरण)

पाठ परिचय

प्रस्तुतोऽयं पाठ्यांशः "पर्यावरणम्" पर्यावरणविषयकः लघुनिबन्धोऽस्ति । अत्याधुनिकजीवनशैल्यां प्रदूषणं प्राणिनां पुरतः अभिशापरूपेण समायातम्। नदीनां वारि मलिनं सञ्जातम्। शैनःशनैः धरा निर्वनं जायमाना अस्ति। यन्त्रेभ्यो निःसरितवायुना वातावरणं विषाक्तं रुजाकारकं च भवति। वृक्षाभावात् प्रदूषणकारणाच्च बहूनां पशुपक्षिणां जीवनमेव स‌ङ्कटापन्नं दृश्यते। वनस्पतीनाम् अभावदशायां न केवलं वन्यप्राणिनाम् अपितु अस्माकं समेषामेव जीवनं स्थातुं नैव शक्यते। पादपाः अस्मभ्यं न केवलं शुद्धवायुमेव यच्छन्ति अपितु ते अस्माकं कृते जीवने उपयोगाय पत्राणि पुष्पाणि फलानि काष्ठानि औषधीन् छायां च वितरन्ति । अस्माद् हेतोः अस्माकं कर्तव्यम् अस्ति यद् वयं वृक्षारोपणं तेषां संरक्षणम्, जलशुचिताकरणम्, ऊर्जायाः संरक्षणम्, उद्यान-तडागादीनाम् शुचितापूर्वकं पर्यावरणसंरक्षणार्थं प्रयत्नं कुर्याम। अनेनैव अस्माकं सर्वेषां जीवनम् अनामयं सुखावहञ्च भविष्यति ।

हिन्दी अनुवाद -प्रस्तुत यह पाठ्यांश "पर्यावरणम्" पर्यावरण विषय पर लघु निबन्ध है। अत्याधुनिक जीवन-शैली में प्रदूषण प्राणियों के सामने अभिशाप के रूप में आया है। नदियों का पानी गन्दा हो गया है। धीरे-धीरे पृथ्वी वनों से रहित होती जा रही है। मशीनों से निकलने वाली हवा से वातावरण जहरीला और बीमारी देने वाला हो रहा है। वृक्षों के अभाव और प्रदूषण के कारण बहुत सारे पशु-पक्षियों का जीवन ही संकट में पड़ा हुआ दिखाई देता है। वृक्षों के अभाव की दशा में न केवल वन्य प्राणी बल्कि हम सभी का जीवन रह नहीं सकता। पौधे हमें न केवल शुद्ध हवा ही देते हैं बल्कि वे हमारे लिए जीवन में उपयोग केलिए पत्ते. फूल, फल, लकड़ी, औषधि और छाया देते हैं। इस कारण से हमारा कि हम वृक्षारोपण, उनका संरक्षण, पानी को साफ रखना, ऊर्जा का संरक्षण, बगीने आदि की पवित्रतापूर्वक पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रयत्न करें। इससे ही हम गभी का जीवन निरोग और सुखी होगा।

पाठ का हिन्दी अनुवाद/भावार्थ

(१) प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते । इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रका सुखसाधनैः च तर्पयति। पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः अम्या प्रमुखानि तत्त्वानि । तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्मार्क पर्यावरणं रचयन्नि आजियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम् । यथा अजातशिल मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणागीत च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसूख, सद्धिवार, सत्यमदूत माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति । प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः कि कर्तुं प्रभवनि जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचकैः, उल्कापातादिभिश्व सन्तप्ताह मानवस्य क्व मङ्गलम् ?

शब्दार्थ

समेषाम् = सभी के [सर्वेषाम्]। यतते =प्रयत्न करती है [प्रयले कोरि]। पुष्णाति =करती है [पोषणं करोति]। तर्पयति =तृप्त (सन्तुष्ट) करती है [ करोति]। तान्येव= वे ही [तानि एव]। पृथक्तया =अलग से [भिन्नतया]। आवियते= आच्छादित किया जाता है [आच्छाद्यते]। समन्तात्= पूरी तरह से [पूर्णरूपेण]। परितः =ना ओर से [सर्वतः] । तिष्ठति = रहता है [भवति]। कुक्षौ =गर्भ में [गर्भ]। परिष्कृतम् =जुड [शुद्धम्]। अस्मभ्यम् = हमें [अस्माकं कृते]। प्रददाति= प्रदान करती है [प्रदानं करोति] । आतङ्कितः= व्याकुल [व्याकुलः]। जलप्लावनैः =बाढ़ों से [जलोषैः]। वात्याचकैः=आँधी तूफानों से [वातचक्रः]। सन्तप्तस्य= दुःखी का [दुःखितस्य]।

हिन्दी अनुवाद -प्रकृति सभी प्राणियों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह विभिन प्रकार से सभी को पुष्ट करती है और सुख साधनों से तृप्त (सन्तुष्ट) करती है। पृथ्वी उर तेज, वायु और आकाश इसके प्रमुख तत्त्व हैं। वे ही मिलकर या अलग से हमारे पर्यावरण की रचते हैं। जिसके द्वारा संसार चारों ओर से पूरी तरह से आच्छादित किया जाता है, वही पर्यावरण है। जिस प्रकार से अजन्मा शिशु माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है, उसी तरह से मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित रहता है। शुद्ध और प्रदूषण रहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन का मुख अच्छे विचार, सत्य संकल्प और मांगलिक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के कोप से व्याकृत व्यक्ति क्या कर सकता है ? बाड़ों से, अग्नि के भयों से, भूकम्पों से, आँधी-तूफानों में और उल्कापात आदि से दुःखी मनुष्य का कहाँ कल्याण है ? अर्थात् कहीं नहीं।

(२) अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति। सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति । वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवत्त्यवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति ।

शब्दार्थ

अस्माभिः=हमारे द्वारा [वयम्]। लोकमङ्गलाशसिनः= जनता के कल्याण को चाहने वाले [समाजकल्याणकामाः]। यतो हि= क्योंकि [एतेन कारणेन]। विहगाः =पक्षी [पक्षिणः]। कलकूजि क्षेत्ररसायनम् =मधुर कूजन से कार्यों को अमृत [ कणांमृतम्][मधुरध्वनिना]। तत्र= वहाँ [तस्मिन् स्थाने]। ददति =प्रदान करते हैं [प्रदानं कुर्वन्ति]। सरितः = नदियाँ [ नद्यः] । गिरिनिर्झराः= पहाड़ों से निकलने वाले झरने [पर्वतानां प्रपाताः]। अमृतस्वादु = अमृत के समान स्वाद वाला [अमृतम् इव स्वादिष्टम्]। प्रयच्छन्ति=प्रदान करते हैं [प्रदानं कुर्वन्ति ]। काष्ठानि =लकड़ी। समुपहरन्ति =अच्छी प्रकार से प्रदान करते है [सम्यक्तया प्रदानं कुर्वन्ति]। औषधकल्पम् =औषधि के[ प्रमृतम् इव स्वादिष्टम्]। प्रयच्छन्ति= प्रदान समान [औषधी तुल्यम्]।

हिन्दी अनुवाद -इसलिए हमारे द्वारा प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिए और उससे पर्यावरण की रक्षा होगी। प्राचीन काल में ज थे। क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण उपलब्ध होता था। वहाँ विभिन्न प्रकार के पक्षी अपने जनता के के कल्याण को चाहने मधुर कूजन से कानों को अमृत प्रदान करते हैं। वाले ऋषि वन में रहते नदियाँ और पहाड़ों से निकलने वाले झरने अमृत के समान स्वाद वाला निर्मल जल प्रदान करते हैं। वृक्ष और लताएँ फल, फूल और ईंधन के लिए लकड़ी बहुत अधिक मात्रा में अच्छी प्रकार से प्रदान करती हैं। ठण्डी धीरे-धीरे चलने वाली सुगन्धित वन की वायु औषधि के समान प्राणवायु (ऑक्सीजन) बाँटती है।

(३)परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवाः व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति । तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेष उपद्रवं विदद्धति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशकत्री भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति। तत्सर्वमिदानीं चिन्तनीयं प्रतिभाति।

शब्दार्थ

स्वार्थान्धः = स्वार्थ में अन्धः [निजलाभे अन्धः]। अद्य आज [वर्तमान समये]। यन्त्रागाराणाम् कारखानों के [यन्त्रालयानाम्]। विषाक्तम् = जहरीला [विषयुक्तम्]। निपातयन्ति = गिरा रहे हैं [पातनं क्रियते]। मत्स्यादीनाम् - मछली आदि [मीनः आदीनाम्]। अपेयम् =न पीने योग्य [न पानयोग्यम्]। सर्वथा =पूर्णरूप से [पूर्णतः]। निर्विवेकम् = बिना सोचे-समझे [विचारं बिना]। छिन्दन्ति =काटे जा रहे हैं [कर्तनं क्रियन्ते]। अवृष्टिः = वर्षा न होने की समस्या [अनावृष्टिः]। शरणरहिताः= बेसहारा होकर [आश्रयहीनाः]। विदधति करते हैं [कुर्वन्ति]। वृक्षकर्तनात् = पेड़ों के काटने से [वृक्षाणाम् उत्छेदात्]। विकृतिः = बदली गई/परिवर्तित [परिवर्तिता]। विनाशकर्मी = विनाश करने वाली [विनाशकारिका]। प्रतिभाति= प्रतीत होता है [प्रतीतः भवति]।

हिन्दी अनुवाद -परन्तु स्वार्थ में अन्धा मनुष्य उस ही पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए मनुष्य बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। लोग कारखानों का जहरीला पानी नदियों में गिरा रहे है। उससे मछली आदि एवं पानी में रहने वाले जीवों का क्षण में ही नाश हो जाता है। वह नदी का पानी भी पूर्णरूप से न पीने योग्य हो जाता है। मनुष्य व्यापार बढ़ाने के लिए वन के वृक्षों को बिना सोचे-समझे काटे जा रहे हैं जिससे अवृष्टि (वर्षा न होने की समस्या) बढ़ रही है और वन के पशु बेसहारा होकर गाँवों में उपद्रव करते हैं। पेड़ों के काटने से शुद्ध वायु का भी संकट उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार स्वार्थ में अन्धे मनुष्य के द्वारा बदली गई प्रकृति ही उनका विनाश करने वाली हो गयी है। पर्यावरण में परिवर्तन होने से विभिन्न रोग और भीषण समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। यह सब इस समय सोचने के योग्य प्रतीत होता है।

(४) धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयःप्रतिपादितवन्तः । अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्त्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि स्थलचराः, मत्स्य कच्छप मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यतः ते स्थलमलानाम् अपनोदिनः जलमलानाम् अपहारिणश्च । प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः ।

शब्दार्थ

रक्षितः= रक्षित होने पर। आर्षवचनम् =वैदिक ऋषियों का वचन है [वैदिकवचनम्]। धर्मस्यैवाङ्गमिति= धर्म का ही एक अंग है [धर्मस्य एव अङ्गम् इति]। प्रतिपादितवन्तः =प्रमाणित किया है [प्रमाणितवन्तः]। वापी =बावड़ी। कूपः =कुएँ। तडागः= तालाब । देवायतन =मन्दिर [देवालयः, मन्दिरम्]। विश्रामगृहम् =विश्राम घर, धर्मशाला [विश्रामस्थलम्]। स्त्रोतो =रूपेण साधन के रूप में [साधनरूपेण]। अङ्गीकृतम = स्वीकार किए गए हैं [स्वीकृतम्]। कुक्कुरः= कुत्ता [श्वानः]। नकुलः = नेवला । मत्स्यः = मछली [मीनः]। कच्छपः =कछुआ। प्रभृतयः =इत्यादि [इत्यादयः]। यतः ते = क्योंकि वे [यतोहि ते]। स्थलमलानाम् अपनोदिनः= भूमि की गन्दगी को दूर करने वाले [भूमिमलापसारिणः]। जलमलानाम् अपहारिणः= जल की मलीनता के साफ करने वाले [जलमलापसारिणः]। सम्भवति =हो सकती है [ भवितुम् शक्नोति]।

हिन्दी अनुवाद - "रक्षित धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है" यह वैदिक ऋषियों का वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही एक अंग है, ऐसा ऋषियों ने प्रमाणित किया है। इसलिए ही बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि का निर्माण और मन्दिर, विश्रामघर (धर्मशाला) आदि की स्थापना धर्म की सिद्धि के साधन के रूप में स्वीकार किए गए हैं। कुत्ते, सूअर, साँप, नेवला आदि थलचरों एवं मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि वे भूमि की गन्दगी को दूर करने वाले और जल की मलीनता को साफ करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा से ही संसार की रक्षा हो सकती है, इसमें सन्देह नहीं है।

पाठ का अभ्यास

प्रश्न १. एकपदेन उत्तरं लिखत -

(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)

(क) मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?

(मनुष्य कहाँ सुरक्षित रहता है ?)

उत्तर-पर्यावरणकुक्षौ। (पर्यावरण की गोद में)।

( ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते स्म ?

(सुरक्षित पर्यावरण कहाँ पाया जाता था ?)

उत्तर-वने। (वन में)। (ऋषियों का वचन)।

(ग) आर्षवचनं किमस्ति ?

(आर्षवचन क्या है ?)

उत्तर-ऋषिवचनम्।

अथवा

धर्मो रक्षति रक्षितः।

(रक्षित धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है।)

(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः ?

(पर्यावरण किसका अंग है ऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है ?)

उत्तर-धर्मस्य । (धर्म का)।

(ङ) लोकरक्षा कया सम्भवति ?

(लोकरक्षा किससे सम्भव होती है ?)

उत्तर-प्रकृतिरक्षया। (प्रकृति की रक्षा से)।

(च) अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति

(अजन्मा शिशु कहाँ सुरक्षित रहता है ?)

उत्तर-मातृगर्ने। (माता के गर्भ में)।

(छ) प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते ?

(प्रकृति किनके संरक्षण के लिए प्रयल करती है ?)

उत्तर- सर्वप्राणिनाम्। (सभी प्राणियों के लिए)।

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प्रश्न २. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा के द्वारा लिखिए-)

(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति ?

(प्रकृति के प्रमुख तत्त्व कौन से हैं ?)

उत्तर-पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि सन्ति ।

(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश प्रकृति के प्रमुख तत्त्व हैं।)

(स्वार्थ में अन्धा मनुष्य क्या करता है ?)

(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति ?

उत्तर-स्वार्थान्धः मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति ।

(स्वार्थ में अन्धा मनुष्य आज पर्यावरण का नाश कर रहा है।)

(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति ?

(पर्यावरण में विकार होने से क्या होता है ?)

उत्तर- पर्यावरणे विकृते जाते विविधा रोगा भीषणसमस्याश्च जायन्ते।

(पर्यावरण में विकार होने से विभिन्न रोग और भीषण समस्या उत्पन्न होती है।)

(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया ?

(हमारे द्वारा पर्यावरण की रक्षा कैसे करनी चाहिए ?)

उत्तर - अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया तेन च पर्यावरणस्य रक्षा भविष्यति।

(हमारे द्वारा प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए और उससे पर्यावरण की रक्षा होगी।)

(ङ) लोकरक्षा कथं संभवति ?

(संसार की रक्षा कैसे सम्भव होती है ?)

उत्तर-लोकरक्षा प्रकृतिरक्षयैव संभवति ।

(संसार की रक्षा प्रकृति की रक्षा के द्वारा ही सम्भव होती है।)

(शुद्ध पर्यावरण हमें क्या-क्या देता है ?)

(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति ?

उत्तर-परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च ददाति।

(शुद्ध पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन का सुख, अच्छे विचार, सत्य-संकल्प और मांगलिक सामग्री देता है।)

प्रश्न ३. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -

(मोटे शब्दों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)

(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।

(वन के वृक्ष बिना सोचे-समझे काटे जा रहे हैं।)

प्रश्ननिर्माणम्-के निर्विवेकं छिद्यन्ते ?

(कौन बिना सोचे-समझे काटे जा रहे हैं ?)

(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते।

(पेड़ों के काटने से शुद्ध वायु नहीं प्राप्त होती है।)

प्रश्ननिर्माणम् - कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते ?

(किससे शुद्ध वायु नहीं प्राप्त होती है ?)

(ग) प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति ।

(प्रकृति जीवन का सुख देती है।)

प्रश्ननिर्माणम् - प्रकृतिः किं प्रददाति ।

(प्रकृति क्या देती है ?)

(घ) अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति ।

(अजन्मा शिशु माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है।)

प्रश्ननिर्माणम् - अजातश्शिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?

(अजन्मा शिशु कहाँ सुरक्षित रहता है ?)

(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति ।

(पर्यावरण की रक्षा धर्म का अंग है।)

प्रश्ननिर्माणम् - पर्यावरण की रक्षा कस्य अङ्गम् अस्ति ?

(पर्यावरण की रक्षा किसका अंग है ?) प्रश्न ४. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत- (उदाहरण के अनुसार पदों की रचना कीजिए-) (क) यथा- जले चरन्ति इति—जलचराः उत्तर- स्थले चरन्ति इति—स्थलचराः निशायां चरन्ति इति—निशाचराः व्योम्नि चरन्ति इति—व्योमचराः गिरौ चरन्ति इति—गिरिचराः भूमौ चरन्ति इति—भूमिचराः (ख) यथा- न पेयम् इति—अपेयम् उत्तर- न वृष्टि इति—अवृष्टिः न सुखम् इति—असुखम् न भावः इति—अभावः न पूर्ण: इति—अपूर्णः प्रश्न ५. उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत - (उदाहरण के अनुसार पदों की रचना कीजिए-) यथा - वि + कृ + क्तिन् =विकृतिः उत्तर- (क) प्र + गम् + क्तिन् =प्रगतिः (ख) दृश् + क्तिन्=दृष्टिः (ग) गम् + क्तिन्=गतिः (घ) मन् + क्तिन्= मतिः (ङ) शम् + क्तिन्=शान्तिः (च) भी + क्तिन्= भीतिः (छ) जन् + क्तिन्=जातिः (ज) भज् + क्तिन्=भक्तिः (झ) नी क्तिन्=नीतिः प्रश्न ६. (निर्देश के अनुसार परिवर्तन कीजिए-) निर्देशानुसारं परिवर्तयत- यथा-स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति (बहुवचने)। स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति। (क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः ? (बहुवचने) उत्तर- -सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः ? (ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने) उत्तर- मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति। (ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने) उत्तर- वनवृक्षः निर्विवेकं छिद्यते। (घ) गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने) उत्तर- गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः। (ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने) उत्तर-सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति । (अ) पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्च वाक्यानि लिखत। (पर्यावरण की रक्षा के लिए आप क्या करेंगे इस विषय पर पाँच वाक्य लिखिए-) यथा - अहं विषाक्तम् अवकरं नदीषु न पातयिष्यामि। उत्तर- (क) अहं वृक्षारोपणं करिष्यामि। (ख) अहं जलप्रदूषणं न करिष्यामि। (ग) अहं यत्र-तत्र मलमूत्रविसर्जनं न करिष्यामि। (घ) अहं स्थलचराणां जलचराणां च रक्षां करिष्यामि। (ङ) अहं निरर्थकं वृक्षाणां कर्तनं न करिष्यामि। प्रश्न ७ उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक्कृत्वा लिखत - (उदाहरण के अनुसार उपसर्गों को अलग करके लिखिए-) यथा - संरक्षणाय—सम् उत्तर - (i) प्रभवति—प्र (ii) उपलभ्यते—उप (iii) निवसन्ति—नि (iv) समुपहरन्ति—सम् + उप (v) वितरन्ति—वि (vi) प्रयच्छन्ति—प्र (vii) उपगता—उप (viii) प्रतिभाति—प्रति (अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत (उदाहरण के अनुसार नीचे लिखे समस्त पदों के विग्रह लिखिए-) यथा - तेजोवायुः—तेजः वायुः च। गिरिनिर्झराः—गिरयः निर्झराः च। उत्तर- (1) पत्रपुष्पे—पत्रं च पुष्यं च। (ii) लतावृक्षी —लता च वृक्षः च। (iii) पशुपक्षी— पशुः च पक्षी च। (iv) कीटपतङ्गौ —कीटः च पतङ्गः च। परियोजनाकार्यम् प्रश्न (क) विद्यालयप्राङ्गणे स्थितस्य अद्यानस्य वृक्षाः पादपाश्च कथं सुरक्षिताः स्युः तदर्थं प्रयत्नः करणीयः इति सप्तवाक्येषु लिखत। (विद्यालय के प्रांगण में स्थित बगीचे के पेड़ और पौधे कैसे सुरक्षित रहें इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए इसे सात वाक्यों में लिखिए-) उत्तर- (1) विद्यालयस्य उद्याने प्रतिदिनं स्वच्छता करणीया। (2) वृक्षेषु पादपेषु जलं दातव्यम्। (3) वृक्षाणां पत्राणि न त्रोटनीयानि। (4) वृक्षाणां कर्तनं न करणीयम्। (5) अधिकाधिकं वृक्षारोपणं करणीयम् । (6) छात्राः तत्र सेवां कुर्युः। (7) शिक्षकाः छात्रान् वृक्षसंरक्षणाय बोधयन्तु। प्रश्न (ख) अभिभावकस्य शिक्षकस्य वा सहयोगेन एकस्य वृक्षस्य आरोपणं करणीयम् । (यदि स्थानम् अस्ति।) तर्हि विद्यालय प्राङ्गणे, नास्ति चेत् स्वस्मिन् प्रतिवेशे, गृहे वा।) कृतं सर्वं दैनन्दिन्यां लिखित्वा शिक्षकं दर्शयत। (अभिवावक या शिक्षक के सहयोग से एक वृक्ष का आरोपण करना चाहिए। (यदि स्थान हो तो विद्यालय के प्रांगण में नहीं है तो अपने पड़ोस या घर में) किए गए सभी कार्य को डायरी में लिखकर शिक्षक को दिखाएँ-) उत्तर- छात्र स्वयं करें।