पाठ का सारांश
(क) चन्द्रशेखर आजाद'- असहयोग आन्दोलन के समय एक बालक जन-समूह की रैलियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था। उस निर्भीक बालक ने लोगों के साथ गिरफ्तार होकर न्यायाधीश को निडरता के साथ के प्रत्युत्तर दिया था। उस बालक का नाम चन्द्रशेखर तिवारी था। बड़े होकर वे महान क्रान्तिकारी हुए। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले को भाभरा नामक गाँव में हुआ था। पिता का नाम सीताराम एवं माता नाम जगरानी देवी था। चन्द्रशेखर देशभक्त थे अंग्रेजों के अत्याचारों से उनका खून खौल उठता था। उन्होंने भगतसिंह के साथ मिलकर क्रांतिकारियों का संगठन बनाया। वे फुर्तिले एवं सूझ-बूझ के धनी थे। उन्हें अंग्रेज पुलिस छू तक न सकी थी। उन्होंने अज्ञातवास में काकी आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया फिरभी ईमानदार बने रहे। आजाद के पास एक पिस्तौल थी जिसे वे 'बलखबुखारा' कहते थे | क्रान्तिकारियों में उनका नाम 'क्विक सिल्वर' था। देश की आजादी के लिए प्रयास करते 27 फरवरी 1931 को 'अल्फेड पार्क' में अंग्रेज पुलिस दल से घिर जाने पर उनका मुकाबला करते हुए अंग्रेजों की पकड़ में न आने के लिए अपने आप की कनपटी पर गोली मार ली और शहीद हो गये। आज उस अल्फेड पार्क का नाम चन्द्रशेखर आजाद के नाम पर 'शहीद पार्क' के नाम से जाना जाता है।
(ख) राजाभाऊ महाकाल - भारत देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात गोवा जो कि पुर्तगाल सरकार के अधीन था, उसकी स्वतन्त्रता के लिए गोवा मुक्ति आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। इस आन्दोलन में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इस आन्दोलन की सफलता में मध्य प्रदेश नवयुवक राजाभाऊ 'महाकाल' का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 15 अगस्त 1955 को गोवा में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फैराने की योजना बनी। विभिन्न टोलियों में से एक टोली का नेतृत्व करते हुए राजा भाऊ 'महाकाल' आगे बढ़े। पुर्तगाल पुलिस के निर्दयता के साथ क्रांतिकारियों पर गोलियाँ चलाई। राजा भाऊ 'महाकाल' के सिर पर गोली लगने के बाद भी वे आगे बढ़ते रहे किन्तु वे आगे बेहोश होकर गिर पड़े तथा 20 घण्टे तक मृत्यु से संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनका जन्म 26 जनवरी 1923 को मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन में हुआ था। उनके पिता का नाम बलवन्त भट्ट 'महाकाल' व माँ का नाम अन्वपूर्णा देवी था। उज्जैन के महाकाल मंदिर में पूजा-अर्चना कार्य के दायित्व को निभाने के कारण उनके नाम के साथ महाकाल जुड़ गया। राजा भाऊ साहसी, वीर और एक अच्छे नेतृत्वकर्ता थे। उनका जन्म व मृत्यु राष्ट्रीय पर्वों 26 जनवरी गणतंत्र दिवस व 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस को ही हुआ था।
सम्पूर्ण पाठ
(क) चन्द्रशेखर 'आजाद'
सन् उन्नीस सौ इक्कीस असहयोग आन्दोलन चरम सीमा पर था। काशी (वाराणसी) की सड़क पर एक जनसमूह चला जा रहा था। समूह में पन्द्रह वर्षीय एक निर्भीक चालक बड़े उत्साह के साथ भारतमाता की जय, महात्मा गांधी और वंदेमातरम का उद्घोष कर रहा था। अचानक घुड़सवार पुलिस उन पर डण्डे बरसाने लगी। बहुत से लोग बन्दी बना लिए गए। बन्दी बनाए गए व्यक्तियों में वह निर्भीक बालक भी था। उसे न्यायालय में उपस्थित किया गया। न्यायाधीश (मजिस्ट्रेट) ने पूछा "तुम्हारा नाम ?" बालक ने सीना फुलाकर उत्तर दिया- "आजाद"। न्यायाधीश ने अगला प्रश्न किया- "पिता का नाम " उत्तर मिला "स्वाधीन"।
न्यायाधीश कुछ चौंके, फिर पूछा-तुम्हारा घर कहाँ है ? बालक ने उसी स्वर में कहा-" जेलखाना"। न्यायाधीश ने उसे पन्द्रह वैत मारने का दण्ड दिया। प्रत्येक बेंत की मार के साथ पीठ की चमड़ी उधड़ने लगी पर बेंत पड़ते ही बालक भारतमाता की जय, महात्म गांधी की जय बोलता रहा।
बालक का नाम चन्द्रशेखर तिवारी था। इस घटना के बाद लोग उसे चन्द्रशेखर आजाद पुकारने लगे। चन्द्रशेखर आजाद बड़े होकर एक महान क्रान्तिकारी बने। चन्दशेखर का जन्म 23 जुलाई सन् 1906 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन झाबुआ जिले के भाभरा नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम और माता का नाम जगरानी देवी था। चन्द्रशेखर बचपन से ही साहसी थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न थी। वे पढ़ने के लिए काशी (वाराणसी) आ गए और संस्कृत विद्यालय में विद्या अध्ययन करने लगे।
अन्याय को देखकर आजाद का खून खौल उठता था। अत: यह स्वाभाविक ही था कि वे सारे देश में हो रहे अंग्रेजों के अत्याचार को कैसे सहन करते? उन्होंने भगतसिंह के साथ मिलकर क्रान्तिकारियों का संगठन बनाया। आजाद शारीरिक बल और सूझबूझ के धनी तो थे ही, बहुत फुर्तीले भी थे। क्रान्तिकारियों के दल में उनका गुप्त नाम 'क्विक सिल्वर' अर्थात् 'पारा' था। इन्हीं गुणों के कारण वे कभी अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आए।
काकोरीकाण्ड के बाद कई प्रमुख क्रान्तिकारी पकड़े गये थे। इनमें रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशनसिंह, अशफाक उल्ला खाँ और राजेन्द्र लाहिड़ी प्रमुख थे। इन सबको फाँसी दे दी गई पर चन्द्रशेखर आजाद को पुलिस छू भी नहीं पाई। वे झाँसी में वेश बदलकर रहने लगे। उन्होंने अपना नाम हरिशंकर ब्रह्मचारी रख लिया। इस समय उनके प्रमुख साथी मास्टर रूद्रनारायण, भगवानदास माहौर, सदाशिवराव मलकापुर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे। जब झाँसी में गुप्तचरों को आजाद की भनक मिली तो वे ओरछा जिला- टीकमगढ़ (म.प्र.) के पास सातार नदी के तट पर एक मन्दिर में रहने लगे। यहाँ रहते हुए उन्होंने फिर से अपना संगठन खड़ा किया। झाँसी में बिताए अज्ञातवास की अवधि में आजाद को भारी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर इससे उनके मस्त स्वभाव और जीवटता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, न ही उन्होंने अपनी ईमानदारी पर आँच आने दी। ऐसा ही एक प्रसंग है।
चन्द्रशेखर आजाद झाँसी में एक छोटे से खोखे में रहते थे। खाने का कोई ठिकाना नहीं। कई दिन केवल एक बार चना-चबैना खाकर रहना पड़ता। एक बार उनके पास केवल एक आना था। वे एक आने के भुने चने ले आए और खाने लगे। खाते-खाते आखिरी मुट्ठी भरी तो उन्हें कुछ गोल-गोल चपटा सा लगा। मुट्ठी खोली तो देखा, चनों में एक इकन्नी थी। पहले तो सोचा चलो कल के खाने की व्यवस्था तो हुई। फिर उनका मन अपने इस विचार पर ग्लानि से भर उठा ' अरे!' यह तो उस चने वाले की मेहनत की कमाई है। इसपर मेरा क्या अधिकार ? चने खाकर उन्होंने पानी पिया और चने वाले को उसकी इकनी लौटा आए । देश के लिए अंग्रेजी खजाना लूटना अलग बात थी, पर स्वयं के लिए एक इकन्नी रखना भी आजाद को स्वीकार न था, भले ही भूखा क्यों न रहना पड़े।
आजाद के पास एक माऊज़र पिस्तौल थी। वे उसे बलखबुखारा' कहते थे। इस पिस्तौल को वे बड़ा ही सँभाल कर रखते थे क्योंकि पुलिस का सामना करने के लिए और कोई उपाय न था। वे कहते थे। जब तक मेरा बलखबुखारा मेरे पास है अंग्रेज मुझे छू भी नहीं सकते। मैं आजाद हूँ और आजाद ही मरूँगा।' उनका यह संकल्प टूटा भी नहीं।'
27 फरवरी 1931 दिन था। आजाद और सुखदेव इलाहाबाद के 'अल्फ्रेड पार्क' में बैठे थे। विशम्भरनाथ सिंह नामक एक पुलिस अधिकारी ने उनको पहचान लिया। उसने गुप्तचर पुलिस अधीक्षक नाटबावर को इसकी सूचना दी। नाटबावर ने दल-बल के साथ आजाद को घेर लिया। दोनों ओर से गोलियाँ चलने लगी। एक गोली आजाद के पाँव में आ लगी। उधर उनकी गोली ने विशम्भरनाथ का जबड़ा तोड़ दिया। दूसरी गोली नाटबावर की कलाई पर लगी। अपने आप को घिरता देखकर आजाद ने सुखदेव को वहाँ से जाने की आज्ञा दी और स्वयं अंग्रेजों का सामना करने लगे। धीरे-धीरे उनकी गोलियाँ समाप्त होने लगीं। आजाद ने अन्तिम गोली अपनी ही कनपटी पर दाग दी। आजाद का निस्पन्द शरीर भूमि पर पड़ा था, मानो भारत माँ का लाड़ला सपूत माँ की गोद में सो गया हो।
आज इलाहाबाद का अल्फ्रेड पार्क शहीद पार्क के नाम से जाना जाता है। आजाद के बलिदान स्थल पर उनकी एक भव्य प्रतिमा स्थापित है। वहाँ जाने वाला हर व्यक्ति उस हुतात्मा को श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने को धन्य समझता है।
(ख) राजाभाऊ 'महाकाल'
महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाये गये स्वतंत्रता संग्राम तथा क्रान्तिकारियों के बलिदान के परिणाम स्वरूप 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया, पर स्वतंत्रता अभी अधूरी थी। भारत भूमि के कुछ भू भागों पर अभी भी विदेशियों का आधिपत्य था। फ्रांस का शासन पाण्डिचेरी पर और पुर्तगाल का शासन गोवा दमन द्वीव पर स्थापित था।
स्वतंत्र भारत की सरकार ने दोनों क्षेत्रों को स्वतंत्र कराने के प्रयत्न किए। फ्रांस ने पाण्डिचेरी पर अपना शासन समाप्त कर इस क्षेत्र को भारत को सौंप दिया, पर पुर्तगाल की सरकार गोआ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई। परिणामतः 1955 में गोआ मुक्ति आन्दोलन प्रारंभ हुआ। इस आन्दोलन में सभी वर्ग, जाति, धर्म और विचारधारा के लोगों ने तथा महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। मध्यप्रदेश के भी अनेक नवयुवकों ने इसमें भाग लिया इन युवकों में एक युवक था- राजाभाऊ महाकाल
गोआ मुक्ति आन्दोलन समिति ने निश्चय किया की 15 अगस्त 1955 के दिन गोआ में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया जाए और गोआ को आजाद कराया जाए। इस हेतु सभी सत्याग्रही पहले पूना के केशरी भवन में एकत्रित हुए वहाँ से चार-चार की टोली में गोआ में प्रवेश करने और तिरंगा ध्वज फहराने की योजना बनी, योजनानुसार 13 अगस्त 1955 को लगभग एक हजार सत्याग्रही बेलगाँव पहुँचे। से चार-चार की टोलियों में सत्याग्रहियों ने गोआ की सीमा में प्रवेश किया। सत्याग्रही आगे बढ़ते जा रहे थे और गोआ को पुलिस उनपर निर्दयता पूर्वक गोलियाँ चला रही थी।
राजाभाऊ महाकाल की टोली भी तिरंगा लेकर आगे बढ़ रही थी। उस पर भी गोलियाँ दागी जा रही थी। एक-एक करके सभी सत्याग्रही जमीन पर गिरने लगे, तभी तेजी से आगे बढ़कर तिरंगे झंडे को राजाभाऊ महाकाल ने संभाला और भारत माता की जय, तिरंगे झंडे की जय बोलते हुए आगे बढ़े। सामने से पुर्तगाल की पुलिस द्वारा लगातार गोलियाँ चलाई जा रहीं थीं। एक गोली राजाभाऊ महाकाल के सिर पर लगी गोली लगने से उनकी आँख पर घाव हो गया फिर भी वे वीरता पूर्वक आगे बढ़ते गए। अधिक खून बह जाने के कारण वे बेहोश होकर गिर पड़े। 20 घण्टे तक मृत्यु से संघर्ष करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए। आन्दोलन में एक ही दिन में सौ सत्याग्रही गोलियाँ खाते हुए, भारत माता की जय तिरंगे झंडे की जय बोलते हुए शहीद हुए जिसमें ब्यावरा के श्री गंगा विष्णु श्याम भरथरे का नाम भी उल्लेखनीय है।
राजाभाऊ महाकाल का जन्म 26 जनवरी 1923 को उज्जैन (मध्यप्रदेश) में हुआ। इनके पिता का नाम बलवन्त भट्ट महाकाल तथा माँ का नाम अन्नपूर्णा देवी था। राजाभाऊ महाकाल का परिवार मूलत: महाराष्ट्र का तैलंग ब्राह्मण परिवार था। महादजी सिंधिया के समय जो विद्वान ब्राह्मण महाराष्ट्र से आए उनमें यह परिवार भी था। इस परिवार को महाकाल की पूजा का कार्य दिया गया। तब से राजाभाऊ का परिवार भगवान महाकाल की पूजा करता आ रहा है तथा इस परिवार के नाम के साथ महाकाल भी जुड़ गया।
राजाभाऊ महाकाल की शिक्षा उज्जैन में ही हुई। बचपन में उन्हें व्यायाम करने, क्षिप्रा नदी में नदी के प्रवाह के विपरीत तैरने और घूमने का शौक़ था। 1952 के कश्मीर आन्दोलन में भी उन्होंने भाग लिया। 1955 में दो बार किसान आन्दोलन का सफल नेतृत्व किया। जब देश में गोआ की मुक्ति के लिए आन्दोलन करने का आहवान हुआ तो राजाभाऊ महाकाल ने उस आन्दोलन में भाग लिया। 10 अगस्त 1955 के दिन इन्दौर के सुभाष चौक में भाषण देते हुए राजाभाऊ महाकाल ने कहा- "भारत की अखण्डता और सुख समृद्धि ही हमारे जीवन का स्वप्न है, इसी स्वप्न को साकार करने के लिए हम गोआ की ओर जा रहे हैं। वहाँ यदि हमें मृत्यु से भी आलिंगन करना पड़े तो हम हँसते-हँसते करेगे।" राजाभाऊ महाकाल ने ऐसा ही किया। उन्हें सिर में गोली • लगी तब उन्होंने अपने साथियों से कहा- "यह तो मुझे कंकड़ लगा है कोई चिन्ता की बात नहीं है।" वे साहसी और वीर पुरुष ही होते हैं जो अपने आपको मातृभूमि पर बलिदान करने के लिए बन्दूक की गोली को कंकड़ लगने के रूप में लेते हैं।
यह भी संयोग है कि राजाभाऊ महाकाल का जन्म 26 जनवरी को हुआ और देश के लिए उनका बलिदान 15 अगस्त को हुआ। ये दोनों ही दिन राष्ट्रीय दिवस हैं।
अभ्यास
बोध प्रश्न
1. नीचे लिखे गए शब्दों के अर्थ शब्दकोश में से खोजकर लिखिए-
सुगठित =
निर्भीक =
हुतात्मा =
न्यायालय =
उद्घोष करना =
अज्ञातवास =
जीवटता =
एक आना =
आधिपत्य =
निर्दय =
प्रवाह =
सर्वहारा =
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
(क) चन्द्रशेखर आजाद कहाँ के रहने वाले थे, उनके माता-पिता का नाम क्या था?
उत्तर -
(ख) काकोरीकाण्ड के बाद कौन-कौन से क्रान्तिकारी पकड़े गए और उन्हें क्या सजा दी गई?
उत्तर -
(ग) अपने अज्ञातवास में चन्द्रशेखर कहाँ-कहाँ रहे और उन्हें किस कठिनाई का सामना करना पड़ा?
उत्तर -
(घ) चन्द्रशेखर ने चने वाले को इकन्नी क्यों लौटाई, उनके इस गुण से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर -
(ङ) 27 फरवरी, 1931 को अल्फ्रेड पार्क में क्या हुआ ? (च) राजाभाऊ महाकाल का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर -
(छ) राजाभाऊ महाकाल को बचपन में क्या-क्या शौक़ थे ?
उत्तर -
(ज) गोआ मुक्ति आन्दोलन में राजाभाऊ महाकाल का क्या योगदान है ? लिखिए।
उत्तर -
(झ) राजाभाऊ महाकाल के शहीद होने की घटना को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर -
3. नीचे दिए गए विकल्पों से छाँटकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क्रान्तिकारी, सुगठित, कनपटी, क्विक सिल्वर, खून, बेलगाँव, शक्तिशाली)
(क) चन्द्रशेखर आजाद बड़े होकर एक महान क्रान्तिकारी बने।
(ख) नित्य व्यायाम करने से उनका शरीर शक्तिशाली और सुगठित था।
(ग) अन्याय देखकर आजाद का खून
खौलने लगता था।
(घ) क्रान्तिकारियों के दल में उनका नाम क्विक सिल्वर था।
(ङ) आजाद ने अन्तिम गोली अपनी ही कनपटी पर दाग दी।
(च) 13 अगस्त 1955 को लगभग एक हजार सत्याग्रही बेलगाँव पहुँचे।
भाषा अध्ययन
1. निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध उच्चारण कीजिए-
सर्वोच्च, उद्घोष, व्यायाम, सुगठित, आर्थिक, अधीक्षक, हुतात्मा
2. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए-
प्राणों की आहुति देना
वीरगति को प्राप्त होना
छू नहीं पाना
3. अनुस्वार और अनुनासिकता वाले शब्दों को छाँटकर लिखिए-
गांधी, साँस, डंडा, कहाँ, ताँगा, पंत, गंध, हँस, पंद्रह, आँचल, अंचल, हंस
4. उदाहरण के अनुसार उपसर्ग लगाकर दो-दो शब्द बनाइए-
वि -
1. विख्यात
2.
3.
आ
1. आगमन
2.
3.
पर
1. पराधीन
2.
3.
प्र
1. प्रगति
2.
3.
5. तः प्रत्यय जोड़कर नया शब्द बनाइए-
परिणाम - तः - परिणामतः
अन्त - तः - अन्ततः
सामान्य - तः - सामान्यतः
फल - तः - फलतः
मूल - तः - मूलतः
5. इन शब्दों की संधि विच्छेद कीजिए-
प्राणोत्सर्ग -
सत्याग्रह -
हुतात्मा -
महाकालेश्वर -
योग्यता विस्तार
1. जिन क्रान्तिकारियों के नाम इस पाठ में आए हैं, उनके विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए।
2. निम्नलिखित नारे किन नेताओं ने दिए, अपने शिक्षक से पूछकर जानकारी प्राप्त कीजिए-
(क) स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। (ख) करो या मरो।
(ग) अंग्रेजो भारत छोड़ो
(घ) तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।
3. आप अपने देश की सेवा किस प्रकार करना चाहेंगे ? सोचिए और चर्चा कीजिए।
4. राजाभाऊ महाकाल उज्जैन के थे, उज्जैन के बारे में आप क्या-क्या और जानते है लिखिए।
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
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