पाठ परिचय
प्रस्तुतोऽयं पाठः "संस्कृत-प्रौढपाठावलिः" इति कथाग्रन्थात् सम्पादनं कृत्वा सङ्गृहीतोऽस्ति। अस्यां कथायाम् एकः तादृशः बालः चित्रितोऽस्ति, यस्य रुचिः स्वाध्यायापेक्षया क्रीडने अधिका भवति। सः सर्वदा क्रीडनार्थमेव अभिलषति परश्च तस्य सखायः स्वस्व-कर्मणि संलग्नाः भवन्ति। अस्मात् कारणात् ते अनेन सह न क्रीडन्ति। अतः एकाकी सः नैराश्यं प्राप्य विचिन्तयति यत् स एव रिक्तः सन् इतस्ततः भ्रमति। कालान्तरे बोधो भवति यत् सर्वेऽपि स्व-स्वकार्यं कुर्वन्तः सन्ति अतो मयापि तदेव कर्तव्यं येन मम कालः सार्थकः स्यात्।
हिन्दी अनुवाद - प्रस्तुत यह पाठ "संस्कृत-प्रौढपाठावलि" इस कथाग्रन्थ से सम्पादित करके संगृहीत है। इस कथा में एक वैसे बालक का चित्रण है जिसकी रुचि पढ़ने की अपेक्षा खेलने में अधिक होती है। वह हमेशा खेलना ही चाहता है परन्तु उसके दोस्त अपने-अपने काम में लगे रहते हैं। इस कारण से वे इसके साथ नहीं खेलते हैं। इसलिए अकेला ही निराशा को प्राप्त करके सोचता है कि वह ही खाली रहकर इधर-उधर घूम रहा है। कुछ समय बाद (उसे) ज्ञान होता है कि सभी अपने-अपने काम कर रहे हैं इसलिए मेरे द्वारा भी वही करना चाहिए जिससे मेरा समय सार्थक हो।
पाठ का हिन्दी अनुवाद / भावार्थ
गद्यांश (1) भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडिम् अगच्छत् किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतः ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन्। तन्द्रालुः द्रालः लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्।
सः अचिन्तयत्- “विरमन्तु एते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूयः क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। एते निष्कुटवासिनः प्राणिन एव मम वयस्याः सन्तु" इति।
भावार्थ - कोई भ्रमित (भटका) बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए, चला गया। परन्तु उसके साथ खेलने के द्वारा समय व्यतीत करने के लिए उस समय मित्रों में कोई भी उपलब्ध नहीं था। क्योंकि वे सभी पिछले दिन के पाठ को याद करके विद्यालय जाने की जल्दी में थे। आलसी बालक ने शर्म से उनकी निगाहों से बचते हुए अकेले किसी बगीचे में प्रवेश किया।
उसने सोचा - "रहने दो इन बेचारे पुस्तकों के गुलामों को। मैं तो अपना मनोरंजन करूँगा। अब विद्यालय जाकर फिर से क्रोधित हुए शिक्षक का मुँह देखना नहीं चाहता। ये वृक्ष की कोटर (अथवा क्रीडोद्यान) में रहने वाले प्राणी ही मेरे मित्र होंगे।"
गद्यांश (2) अथ सः पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारं आह्वयत् । तथापि, सः मधुकरः अस्य बालस्य आह्वानं तिरस्कृतवान्। ततो भूयो भूयः हठमाचरति बाले सः मधुकरः अगायत् - "वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा" इति।
तदा स बालः “अलं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन" इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टिः चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्, अवदत् च- "अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः। एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि" इति। स तु "मया वटदुमस्य शाखायां नीडं कार्यम्" इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो अभवत्।
भावार्थ - उसके बाद उसने (बालक ने) फूलों के बगीचे में घूमते हुए भौरे को देखकर उसको खेलने के लिए दो-तीन बार बुलाया। फिर भी उस भौरे ने उस बालक की आवाज पर ध्यान ही नहीं दिया। तब बार-बार उस बालक के हठ करने पर वह भौंरा गुनगुनाकर बोला- "हम तो फूलों के रस को इकट्ठा करने में लगे हुए हैं।"
तब उस बालक ने "इस झूठे गर्व वाले कीड़े के साथ बात रहने दो" इस प्रकार सोचकर दूसरी जगह निगाहें डालने पर चोंच से घास तिनके आदि ले जाते हुए एक चिड़े को देखा। और बोला- अरे चिड़िया के बच्चे! मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ खेलते हैं। इस सूखी घास को छोड़ो (मैं) तुम्हें स्वादिष्ट खाने के ग्रास (कौर) दूँगा। वह तो "मुझे बरगद के वृक्ष की शाखा (डाल) पर घोंसला बनाना है।" ऐसा कहकर अपने काम में लग गया।
गद्यांश (3) तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितं विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत् । प्रीतो बालः तम् इत्थं संबोधयत् - रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे ? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व। अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। कुक्कुरः प्रत्यवदत् -
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य ।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि॥ इति।
भावार्थ - तब दुःखी बालक ने (कहा) ये पक्षी मनुष्य के पास नहीं आते। इसलिए मनुष्यों के योग्य मनोरंजन करने वाले किसी दूसरे को खोजता हूँ। इस प्रकार सोचकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। प्रसन्न हुए बालक ने उसे इस प्रकार से सम्बोधित किया- अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में किसलिए घूम रहे हो? इस छायादार शीतल पेड़ के नीचे आश्रय लो। मैं भी तुम्हारे जैसे खेलने के साथी को देख (खोज) रहा हूँ। कुत्ता बोला -
जो मुझे पुत्रवत् प्रेम से पालता है उस स्वामी के घर पर रक्षा के कार्य में लगे होने से मेरे द्वारा थोड़ा-सा भी हटना नहीं चाहिए।
गद्यांश (4) सर्वैः एवं निषिद्धः स बालो भग्नमनोरथः सन्- 'कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। नम एतेभ्यः यैः मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्।
ततः प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषीं प्रथां सम्पदं च अलभत।
भावार्थ - सभी के द्वारा इस प्रकार मना किया गया वह बालक टूटी इच्छाओं वाला होकर-कैसे इस संसार में हर कोई अपने-अपने कार्यों में लगे हुए होते हैं। कोई भी मेरी तरह व्यर्थ में समय नहीं बिताता है। इन सभी को नमन है जिन्होंने मेरे आलस्य में (के प्रति) घृणा का भाव उत्पन्न कर दिया। अब अपने योग्य कार्य मैं भी करता हूँ ऐसा विचार करके शीघ्र पाठशाला चला गया।
तब से लेकर उसने विद्या में लगा रहने वाला होकर बहुत विद्वता, ख्याति और धन प्राप्त किया।
शब्दार्थाः
भ्रान्तः = भ्रमित
क्रीडितुम् = खेलने के लिए
केलिभिः = खेल द्वारा
कालं क्षेप्तुम् = समय बिताने के लिए
त्वरमाणाः = शीघ्रता करते हुए
तन्द्रालुः = आलसी
दृष्टिपथम् = निगाह में
पुस्तकदासाः = पुस्तकों के गुलाम
उपाध्यायस्य = गुरु के
निष्कुटवासिनः = वृक्ष के कोटर में रहने वाले
आह्वानम् = बुलावा
हठमाचरति = हठ करने पर
मधुसंग्रहव्यग्राः = पुष्प के रस के संग्रह में लगे हुए
भूयो भूयः = बार-बार
मिथ्यागर्वितेन = झूठे गर्व वाले
चटकम् = चिड़िया
चञ्च्वा = चोंच से
आददानम् = ग्रहण करते हुए को
स्वादूनि = स्वादयुक्त
भक्ष्यकवलानि = खाने के लिए उपयुक्त कौर
स्वकर्मव्यग्रः = अपने कार्यों में संलग्न
अन्वेषयामि = खोजता हूँ
विनोदयितारम् = मनोरंजन करने वाले को
पलायमानम् = भागते हुए
अवलोकयत् = देखा
समबोधयत् = संबोधित किया
निदाघदिवसे = गर्मी के दिन में
अनुरूपम् = उपयुक्त
कुक्कुरः = कुत्ता
रक्षानियोगकरणात् = रक्षा के कार्य में लगे होने से
भ्रष्टव्यम् = हटना चाहिए
ईषदपि = थोड़ा-सा भी
निषिद्धः = मना किया गया
भग्नमनोरथः = टूटी इच्छाओं वाला
कालक्षेपम् = समय बिताना
तन्द्रालुतायाम् = आलस्य में
कुत्सा = घृणाभाव
विद्याव्यसनी = विद्या में रत रहने वाला
प्रथाम् = ख्याति, प्रसिद्धि
पाठ का अभ्यास
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(एक शब्द में उत्तर लिखिए-)
(क) कः तन्द्रालुः भवति?
(कौन आलसी होता है ?)
उत्तर - बालः। (बच्चा)।
(ख) बालकः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत्?
(बच्चे ने कहाँ घूमते हुए भौंरे को देखा ?)
उत्तर - पुष्पोद्यानम्। (फूलों के बगीचे में)।
(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अभवन्?
(कौन फूलों के रस को इकट्ठा करने में लगे हुए थे ?)
उत्तर - मधुकराः। (भौर)।
(घ) चटकः कथा तृणशलाकादिकम् आददाति?
(चिड़ा किससे घास तिनके आदि लाता है?)
उत्तर - चञ्चवा। (चोंच से)।
(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति?
(चिड़ा किसकी शाखा में घोंसला बनाता है?)
उत्तर - वटद्रुमस्य। ( वट वृक्ष की)।
(च) बालकः कीदृशं श्वानं पश्चति?
(बालक कैसे कुत्ते को देखता है ?)
उत्तर - पलायमानम्। (भागते हुए)।
(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यंतसि?
(कुत्ता कैसे दिन में घूमता है ?)
उत्तर - विदाधदिवसे। (गर्मी के दिन में)।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा के द्वारा लिखो-)
(क) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत्?
(बालक कब खेलने के लिए चला गया?)
उत्तर- बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं अगच्छत्।
(बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए चला गया।)
(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा अभवन्?
(बालक के मित्र किसलिए जल्दी में थे?)
उत्तर- बालस्य मित्राणि विद्यालयगमनाय त्वरमाणा अभवन्।
(बालक के मित्र विद्यालय जाने के लिए जल्दी में थे।)
(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान्?
(भौरे ने बालक के बुलावे को किसलिए नहीं माना?)
उत्तर- मधुकरः मधुसंग्रहव्यग्रः आसीत् अतः सः बालकस्य आह्वानं तिरस्कृतवान्।
(भौंरा फूलों के रस को इकट्ठा करने में लगा था इसलिए उसने बालक के बुलावे को नहीं माना।)
(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्?
(बालक ने कैसे चिड़े को देखा?)
उत्तर- बालकः चञ्चवा तृणशलाकादिकमाददानं चटकम् अपश्यत्।
(बालक ने चोंच से घास तिनके आदि ले जाते हुए चिड़े को देखा।)
(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्?
(बालक ने चिड़े को खेलने के लिए किस प्रकार का लालच दिया?)
उत्तर- बालक: चटकाय क्रीडनार्थं स्वादुभक्ष्यकवलानां लोभं दत्तवान्।
(बालक ने चिड़े को खेलने के लिए स्वादिष्ट खाने के ग्रास का लालच दिया।)
(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्?
(दुःखी बालक ने कुत्ते से क्या कहा?)
उत्तर- खिन्नः बालकः श्वानम् अकथयत्- "रे मनुष्याणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामि" इति।
(दुःखी बालक ने कुत्ते से कहा- "अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में किसलिए घूम रहे हो ? इस छायादार शीतल पेड़ के नीचे आश्रय लो। मैं भी तुम्हारे ही जैसे खेलने के साथी को देख (खोज) रहा हूँ।")
(छ) भग्नमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत्?
(टूटी इच्छाओं वाले बालक ने क्या सोचा?)
उत्तर- भग्नतमनोरथः बालः अचिन्तयत्-"अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति न कोऽपि मामिव वृथा कालक्षेपं सहते। अथ स्वोचितम् अहम् अपि करोमि " इति।
(टूटी इच्छाओं वाले बालक ने सोचा- "इस संसार में हर कोई अपने-अपने कार्यों में लगे हुए होते हैं। कोई भी मेरी तरह व्यर्थ में समय नहीं बिताता है। अब अपने योग्य कार्य मैं भी करता है।")
प्रश्न 3. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत-
(नीचे लिखे श्लोक का भावार्थ हिन्दी भाषा या अंग्रेजी भाषा के द्वारा लिखिए-)
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि॥
उत्तर- जो मुझे पुत्रवत् प्रेम से पालता है उस स्वामी के घर पर रक्षा के कार्य में लगे होने से मेरे द्वारा थोड़ा सा भी हटना नहीं चाहिए। अर्थात् इस श्लोक में कुत्ते के माध्यम से कर्तव्यपालन की भावना की अभिव्यक्ति की गई है। जिस प्रकार एक कुत्ता कर्तव्य का पालन करते हुए अपने स्वामी के प्रति वफादारी दिखाता है। उसी प्रकार से प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने कर्तव्यों का पालन पूर्ण निष्ठा के साथ करना चाहिए।
प्रश्न 4. "भ्रान्तो बालः" इति कथायाः सारांशं हिन्दीभाषया आङग्लभाषया वा लिखत।
("भ्रमित बालक" इस कहानी का सारांश हिन्दी भाषा अथवा अंग्रेजी भाषा के द्वारा लिखो-)
उत्तर- कोई भ्रमित बालक विद्यालय जाने के समय खेलने के लिए निकलता है परन्तु उस समय विद्यालय जाने की जल्दी में होने के कारण कोई भी मित्र उसके साथ खेलने नहीं आता। वह बगीचे में पहुँचकर वहाँ के प्राणियों के साथ खेलने का निश्चय करता है। सर्वप्रथम वह भौरे को खेलने के लिए बुलाता है परन्तु भौंरा फूलों का रस इकट्ठा करने के काम में लगे होने के कारण मना कर देता है। इसी प्रकार चिड़िया अपना घोंसला बनाने तथा कुत्ता अपने स्वामी की रक्षा के कार्य में लगा होने के कारण खेलने से मना कर देते हैं। अन्त में उस बालक को भी आभास होता है कि जब सभी अपने-अपने कार्यों में लगे हैं तो वही अपना समय व्यर्थ गंवा रहा है। अतः वह भी पढ़ने के लिए विद्यालय चला जाता है।
प्रश्न 5. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(मोटे शब्दों के आधार पर प्रश्न निर्माण करो-)
(क) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि। ( स्वादिष्ट खाने के लिए ग्रास तुम्हें देता है।) प्रश्न निर्माणम् - कीदृशानि भस्यकवलानि ते दास्यामि? ( कैसे खाने के ग्रास तुम्हें दूँगा?) (ख) चटक: स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्। (चिड़ा अपने कर्म में लगा हुआ था।) प्रश्न निर्माणम् - पटक कस्मिन् व्यग्रः आसीत्? (चिड़ा किसमें लगा हुआ था?) (ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति। (कुता मनुष्यों का मित्र है।) प्रश्न निर्माणम् - कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति? (कुत्ता किसका मित्र है?) (घ) स महती वैदुष लब्धवान्। (उसने बहुत विद्वता प्राप्त की।) प्रश्न निर्माणम् - सः कीदृशीं वैदुर्षी लब्धवान्? (उसने कैसी विद्वता प्राप्त की?) (ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति। ( रक्षा के कार्य में लगे होने से मेरे द्वारा थोड़ा सा भी हटना नहीं चाहिए ।) प्रश्न निर्माणम् -कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति? ( किससे मेरे द्वारा थोड़ा-सा भी हटना नहीं चाहिए?)
प्रश्न 6. "एतेभ्यः नमः" इति उदाहरणमनुसृत्य नमः इत्यस्य योगे चतुर्थी विभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
("इनको नमस्कार हैं" इस प्रकार उदाहरण के अनुसार 'नमः' इसके योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करके पाँच वाक्यों की रचना करें।)
उत्तर-
(i) गुरवे नमः।
(ii) नमः शिवाय।
(iii) गणेशाय नमः।
(iv) कृष्णाय नमः ।
(v) अध्यापकाय नमः।
प्रश्न 7. 'क' स्तम्भे समस्तपदानि 'ख' स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि तानि यथासमक्ष लिखत-
('क' स्तम्भ में समस्त पद और 'ख' स्तम्भ में उनके विग्रह दिये गए हैं, उनको सही जगह पर लिखो-)
उत्तर-
'क' स्तम्भ - 'ख' स्तम्भ
(क) दृष्टिपथम् - दृष्टेः पन्थाः
(ख) पुस्तकदासा - पुस्तकानां दासा
(ग) विद्याव्यसनी - विद्याया: व्यसनी
(घ) पुष्पोद्यानम् - पुष्पाणाम् उद्यानम्
प्रश्न 7. (अ) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम्। विशेषणपदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत-
(नीचे लिखे शब्दों के जोड़ों में एक विशेष्य पद और दूसरा विशेषण पद है। विशेषण पद और विशेष्यपद को अलग-अलग चुनकर लिखिए-)
उत्तर- विशेषणम्विशेष्यम्
(क) खिन्नः बालः - खिन्नः - बालः
(ख) पलायमानं श्वानम् - पलायमानं - श्वानम्
(ग) प्रीतः बालकः - प्रीतः - बालकः
(घ) स्वादूनि भक्ष्यकवलानि - स्वादूनि - भक्ष्यकवलानि
(ङ) त्वरमाणा: वयस्याः - त्वरमाणा: - वयस्याः
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